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बेशर्म जमाना

लेखक एक सेवक
लेखक एक सेवक
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“बेशर्म जमाना ” कहता है ये बेटी किसकी कौन है ये
जज्बाती है, नादाँ है ये गूंगी तो नहीं पर मौन है ये
ये बातें सुनती रिश्तों की तो कांप उठे कर नैन सजल
किस्से पूछू कोई बतला दो पहचानो रुदन हाँ कौन है ये
कोरा काजल बन बही है ये श्रंगार नहीं बन पाई है
जीवन में अश्रुधार सिवा कोई राग नहीं दे पाई है
अभी बचपन ही तो लांघा है मासूम सी है पर कौन है ये
घर की इज्ज़त गृह लक्ष्मी थी, बेटी या बहन या पत्नी थी
रोशन थी घर की दीवारें इससे क्यारी भी फूली थी
अब नहीं जरूरी कौन है बस अब तो सिर्फ अछूत है ये
कोई कहता प्रेमी छोड़ गया कोई बोले घर से भागी है
कोई खड़ा मौन फटे वस्त्र तके कोई कहे बड़ी अपराधी है
हमउम्र है मेरी बेटी से कैसे कह दूं मैं कौन है ये

गुडिया के अपराधी हम सभी हैं क्यूंकि हम उसी समाज का हिस्सा है जिसका वह शिकार हुई

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