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पाकिस्तान को जवाब या शांति वार्ता (जागरण blog)

लेखक एक सेवक
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मित्रो सुप्रभात,
आज जब पाकिस्तान ने अपने ऊपर लगे सारे इल्जामो से पल्ला झाड़ लिया है, तब हर बार की तरह हिंदुस्तान उसे जवाब देने की बात कह रहा है ।
बात बातचीत की हो तो हालात सबके सामने है, जो पाकिस्तान खुद अपने देश के नागरिकों की रक्षा नहीं करा पा रहा वो अमन की भाषा कैसे समझेगा।
पर मेरा मानना है की युद्ध तो १९४७ की आजादी से ही शुरू हो गया था (जैसा की अंग्रेजों की राजनीती का हिस्सा था देशों का धार्मिक बटवारा हो ) ।
आजतक पाकिस्तान अलग हुए मुस्लिम्स के साथ हिंदुस्तान का विरोध करता रहा( जबकि १/३ मुस्लिम इंडिया में ही रह गए थे :जो की १९४७ के वक़्त थे ) । आज तक कश्मीर की आड़ में वो अपने मुसलमानी भाइयों को ही जिहाद की आग में स्वाहा करता रहा (क्योंकि कश्मीर के हिन्दुओं को तो पहले ही मार दिया और जो बचे वो हिंदुस्तान के बाकि हिस्सों में जा बसे है )और हर वार दोनों तरफ की सेनाये इसका परिणाम भुगतती रही है ।
आज पाकिस्तान की बागडोर जिन हाथो में है वो उसे कभी भारत का मित्र नहीं बनने देंगे, क्यूंकि इन देशों को अपने हथियारों को बेचने के लिए कोई जंग तो चाहिए। आज भी दोनों देशो की आमदनी का बड़ा हिस्सा इन के रक्षा बेडो की देखरेख और नए हथियारों की खरीद फरोख्त में जात्ता है ।
आजादी के बाद से ही, ये हलके हलके सुलगती जंग जो रुक रुक कर हजारो लाखो जाने लील चुकी है एक सवाल की तरह हिंदुस्तान के सामने है । सवाल है की इसके लिए जिम्मेदार कौन ? और इस समस्या का हल क्या है ?
मै इसकी जिम्मेदारी किसी पर नहीं डाल सकता (क्योंकि ये काम राजनीतिज्ञों का है वो जिसे समझे उसे दागी साबित कर दे )परन्तु हल के बारे में मेरा मत है की सबसे जरूरी है कश्मीर के हालात ठीक करना जोकि वहां के लोगो को हिंदुस्तान की सेना का साथी बनायेगे ( ना कि आतंकियों का गुप्तचर )। फिर सीमा विवादों को हल किया जाये जो की किसी भी स्तर से किये जा सकते है बातों से या युद्ध से । इसके बिना हर वार नयी रणनीति से पाकिस्तान और आतंकी सर उठा कर देश् बसियों की जान के दुश्मन बने रहेंगे ।

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