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“पाक या नापाक”

लेखक एक सेवक
लेखक एक सेवक
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मेरे बच्चो को रुलाना छोड़ दे,
मै हिंदुस्तान हू मुझको सताना छोड़ दे ।

मेरे हाथो में बरदान है, अभिशाप भी है;
मेरी मोह्हब्बत को आजमाना छोड़ दे। ।

मेरे कश्मीर से तेरी कराची दूर कब थी;
बस मेरी बस्ती के घर जलाना छोड़ दे ।

आह सुन बच्चो की तेरे, कितने चूल्हे बंद है;
सीख कुछ, उधार का बारूद लाना छोड़ दे ।

खून तुझमे है मगर, उसमे मुरब्बत अब नहीं;
बच्चो को दिल से लगा, नफरत सिखाना छोड़ दे ।

चाहा कितनी बार ,तू अपना था अपना रहे;
हाथ क्या दिल मिला, और दिल जलाना छोड़ दे ।

फिर समां जाओगे हिंदुस्तान में, जिद मत करो,
मेरे बेटे सख्त है, इनको चिड़ाना छोड़ दे ।

पाक को नापाक, कर रक्खा अपने कर्मो से;
या संभल जा या मेरे घर आना जाना छोड़ दे ।

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