लेखक एक सेवक
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ये ‘दामिनी’ ये ‘अंजलि’ ये किसकी है बेटियाँ
जब प्यार ममता चाहिए, किसकी शिकार ये बेटियां ।
नादान ये या हम सभी जो देखकर अनजान है
हम मूंद कर आँखे समझते बच गई सब बेटियां ।
हिंसक पशु पर हम दया करते नहीं फिर आज क्योँ
इन घूमते नरपशुओं से आओ बचा लें बेटियाँ ।
जब रोज चिंगारी उठे कब तक बचाएं ओढ़नी
ये आग लगने अब ना दे आओ बचा ले बेटियां ।
हम कब सिसक सुन पाएंगे ये झूठा बहरापन हटा
जब रूठ जाएगी देवी वो जो देती है हमें बेटियां ।
दामिनी को अश्रु सुमन के साथ
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